जब हम खुद को पहचानते हैं तभी कुछ अच्छा कर पाते हैं।अन्यथा हमारे शुभचिंतक हमारा अच्छा बुरा सोच कर हमें अपने हिसाब से उधर भेज देते हैं, जिधर वो चाहते हैं। मुंशी प्रेमचंद जी की एक कथा "उद्धार" मैंने पढ़ी।और समझ आया कि सच में ये कथा हमारे समाज का सच्चा आईना...