Overblog
Edit post Follow this blog Administration + Create my blog

प्रेयसी के नयन देख प्रेय व्याकुल होये श्रीकृष्ण

जब प्रेम में विकलता हो,व्याकुलता हो तब रूप और सौंदर्य का भी महत्व बढ़ जाता है।प्रिये के रूप में जैसे प्रियतम इष्ट के दर्शन ही  पा लेता है ।

क्योंकि प्रिय  का रूप ही कुछ ऐसा होता है जिसे निहारने को कभी निहोरा किये जाते हैं ,कभी  बहाने बनाए जाते हैं , तो कभी वजह ढूंढे जाते हैं।ताकि एक दर्शन पाकर हृदय पुलकित ही नहीं ,प्रफ्फुलित ही नहीं ,पुनीत भी हो जाए।

"इसलिए तो राधा कृष्ण का प्रेम वासना से परे है ,विश्वास की धरा पर  स्वयं स्नेहिल प्रकृति है।कृष्ण फूल हैं तो राधा उसकी खुशबू,राधा नदिया हैं तो कृष्ण कल कल करते उसके जल हैं।"

जब प्रिये को पता चले कि प्रीतम उसे निहार रहे हैं तब प्रिय खुद को विशेष रूप से सुसज्जित करने में कुछ इस तरह व्यस्त हो जाते हैं कि.....
 श्याम जी का रूप सौन्दर्य अलौकिक है जिसने एक बार उनके दिव्य रूप के दर्शन कर लिए समझो वह अपनी सुध-बुध खो बैठता है। किशोरी जू के मुख पर लालिमा छायी हुई है। उनके नेत्रों को देखने के बाद श्री कृष्ण भी अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं। एक बार प्रेयसी श्री राधा दर्पण में देखते हुए नेत्रों में काजल लगा रही हैं। तभी प्रेय श्री कृष्ण की नज़र दर्पण में उनके नेत्रों पर पड़ती है। प्रेय अपनी प्रेयसी के नयनों को दर्पण में से निहार रहे हैं। प्रेयसी श्री राधा काजल लगाने में मग्न हैं और प्रेय श्री कृष्ण उनके नेत्रों को देखकर व्याकुल हो रहे हैं जैसे ही श्री राधा उनकी तरफ देखती हैं वह अपनी दृष्टि उनसे हटा लेते हैं। किशोरी जू मंद-मंद मुस्कुरा रही हैं। उन्हें पता है कि प्रेय श्रीकृष्ण का ध्यान उन्हीं की तरफ है। उन्हें आनन्दित करने के लिए प्रेयसी श्री राधा काजल लगाने का अभिनय काफी देर तक कर रही हैं। प्रेय-प्रेयसी दोनों के नेत्र एक-दूसरे से अठखेलियाँ करने लगते हैं और दोऊ पिय-पियारी रस व प्रेम के इस अद्भुत आनंद में डूब जाते हैं।

धन्यवाद शिवानी जी🙏🙏🙏

To be informed of the latest articles, subscribe:
Top