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कृष्ण बने राधाभूषण

एक बार की बात है श्री श्यामसुंदर माता अम्बिका के मंदिर गए, और उनसे प्रार्थना करने लगे 
हे अंबिके, आप मुझ पर कृपा करो-
माँ बोली, गोबिंद आप यहाँ आ गए हो सायं में
यशोदा मैया आपकी इंतज़ार कर रही होगी तो मैंने आपका एक रूप मैया के पास स्थापित कर दिया है ताकि आपकी माँ आपके विरह में रोवे ना 
आप बताओ कन्हैया क्या प्रार्थना है आपकी
अम्बिका माँ बोली
कन्हैया बोले माँ
एक बात बताओ " सारे विश्व में सबसे कोमल वस्तु कौन सी है"
माँ बोली - कन्हैया इस दुनिया में सबसे कोमल दो वस्तु है 

एक श्री राधारानी
और
दूसरे आप श्री कृष्ण
कन्हैया आश्यर्चजनित अवस्था में बोले
माँ यह तो मैं जानता हूँ " श्री राधारानी" अति कोमल है
पर मैं भी कोमल हूँ यह मुझे आज पता चला है 

आज आपसे एक विनय करता हूँ मुझे आशीर्वाद दीजिए माँ
हे अम्बिका माँ , एक आशीर्वाद दीजिए
जैसा आपने कहा के मैं अति कोमल हूँ तब मुझे
आशीर्वाद दो
" मैं जो चाहूँ वहीं बन जाऊँ"
माँ बोली - जाओ कन्हैया आपको दे दिया मैंने आशीर्वाद
" आप जो चाहो वो बन जाओगे"
कन्हैया अति प्रसन्न हुए और अपने गृह चले गए"

तब कन्हैया ठीक श्री राधारानी के सम्मुख पहुँच गए
कन्हैया, श्री राधारानी के आभूषणों की तरफ़ देखते है जो श्री ललिताजी सज़ा रही थी श्री राधारानी को
तभी श्री कृष्ण सोचे " यह आभूषण कितने कठोर होते है जो मेरी राधारानी को कष्ट देते होंगे 

वो इन कठोर आभूषणों को पहन ज़रूर लेती है केवल और केवल मेरी प्रसन्नता के लिए के मैं सुखी रहूँ 
परंतु इतनी सुंदर कोमल श्री राधारानी को आभूषणों की क्या आवश्यकता
यह देखो यह " कर्ण" झुमका कैसे इनके कोमल कानो को कष्ट दे रहा है 

गले में लम्बा हार तो देखो इतनी कोमल और ऊपर से लम्बा हार कैसे झुकी झुकी चल रही है मेरी कोमलांगी राधा,
साड़ी तो देखो कितनी भारी, नथ बेसर कोमल नासिका को जकड़ कर
बैठी है 

तब श्री कृष्ण बोले-
अम्बिका माँ ने मुझे कहा है मैं अत्यंत कोमल हूँ इस पूरी सृष्टि में
और मैंने उनसे वरदान भी ले लिया है के मैं जो चाहूँ वो बन जाऊँ
तब कन्हैया ने उसी समय अपने एक रूप से
श्री राधारानी के सारे आभूषण बन गए, उनकी साड़ी लहंगा काँचुकि, सिंदूर महावर, नथ बेसर, करधानि अँगूठी आदि सब कन्हैया स्वयं बन गए क्यूँकि वो अति कोमल है 

और श्री राधारानी को कोमलता लगे इन आभूषणों से जो मेरे रूप से बने
कन्हैया सब आभूषण स्वयं बन गए और दूसरे रूप में ललिताजी से बोले " आप रानी को यह आभूषण पहनाओ जो अत्यंत कोमल है "
राधारानी अट्ठास करती हुई बोली
ललिता जी " नंदगाओं के आभूषण कोमल भी होते है
ललिता जी ने सारे आभूषण ले लिए और राधा रानी को पहनाने लगी तब एक एक आभूषण से " श्री राधा" नाम के ध्वनि होने लगी तब राधारानी बोली " यह आभूषण मेरा नाम क्यूँ गा रहे है "

कन्हैया जानते थे के यह सब आभूषण वो स्वयं बने है तभी आभूषणों, वस्त्रादि से राधा राधा की धुनी हो रही है
एक एक आभूषण और वस्त्रादि जो अत्यंत कोमल थे श्री राधारानी को अत्यंत सुख पहुँचा रहे थे l
राधारानी बोली
ललिताजी पहली बार आभूषण, वस्त्रादि मुझे " श्याम सुख आलिंगन का आनंद पहुँचा रहे है 

कन्हैया अति प्रसन्न हुए के मेरी कोमलांगी को मैं स्वयं अपनी कोमल देह से वस्त्र आभूषण बन उन्हें सुखी कर दिया l
ऐसा क्यूँ हुआ ?
क्यूँ कृष्ण राधारानी के आभूषण वस्त्र कोमल बने ?

क्यूँकि एक दिन " श्री चित्रा सखी राधारानी की वेणी में फूल का गज़रा बाँध रही थी और गुणमंजरी फूलो का गज़रा बना बना के श्री चित्रा को दे रही थी और चित्रा राधारानी की वेणी में बाँध रही थी और यह दृश्य श्री कृष्ण झाड़ियों में
छिप के देख रहे थे l

तभी राधारानी की वेणी में जैसे ही चित्राजी पुष्प बाँधती तभी राधारानी अपने केशों को फैलाकर सारे फूलो के गज़रे को धरती पर फैला देती l
तब चित्रा जी कहती
यह क्या कर रही हो राधारानी
आप सारे पुष्पों की माला गज़रा जो हम आपको पहना रही है आप सारे केश फैला क्यूँ गिरा रही हो,

राधारानी के आँखों में आँसू आ गए
और यह सब श्री कृष्ण देख रहे थे
राधारानी चित्रा का हाथ पकड़ बोली
" सखी मैं तुम पर वारी वारी जाती हूँ परंतु
" जब तुम मेरे केश में यह फूल की माला डाल उन्हें बाँधती हो तब मुझे अत्यंत वेदना होती है 

क्योंकि यह " काले केश मुझे श्यामसुंदर के वर्ण की याद दिला देते है और जब तुम मेरे श्यामसुंदर रूपी केश को " फूलो से बाँधने का प्रयास करती हो तब मैं दुखी हो जाती हूँ के
तुम कैसे मेरे श्यामसुंदर रूपी केश को बाँध सकती हो
मैं अपने श्याम को बँधता नहीं देख सकती 
बस तभी ही " अपने सारे केश शिंगार को पल में ख़राब कर सब केश को खोल देती हूँ के मेरे कन्हैया को कोई ना बांध सके
जय जय श्री राधे राधे जी

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